मुख्य समाचार:

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भारतीय सेना ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा गांधी प्रतिमा के पास लगाए गए विरोध मंच को हटा दिया। यह मंच बंगाल में हिंदी भाषियों के खिलाफ कथित हिंसा और भेदभाव के विरोध में स्थापित किया गया था। सेना के इस कदम ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है।


घटना का विवरण:

कोलकाता के मयूर रोड पर स्थित गांधी प्रतिमा के पास टीएमसी ने "भाषा आंदोलन" के तहत एक विरोध मंच स्थापित किया था। सेना के अधिकारियों का कहना है कि यह मंच निर्धारित दो दिवसीय अनुमति के बाद लगभग एक महीने तक वहां बना रहा, जिससे यह नियमों का उल्लंघन था। कई बार चेतावनी देने के बावजूद मंच नहीं हटाया गया, जिसके बाद सेना ने इसे हटाने की कार्रवाई की। इस कार्रवाई के दौरान कोलकाता पुलिस भी मौजूद थी।


राजनीतिक प्रतिक्रिया:

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कार्रवाई पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) पर आरोप लगाया कि वह सेना का दुरुपयोग कर रही है और इसे राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा, "मैं सेना को दोष नहीं देती, लेकिन भाजपा की राजनीति के कारण यह हुआ है।" टीएमसी ने इस कदम को "अलोकतांत्रिक" और "अविवेकपूर्ण" करार दिया है।

भा.ज.पा. ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि सेना ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए कार्रवाई की है और इसमें कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं था।


सेना के नियम और अनुशासन:

भारतीय सेना के नियम और अनुशासन अत्यंत कड़े होते हैं। सेना के अधिकारियों को समय की पाबंदी, वरिष्ठों का सम्मान, और आदेशों का पालन अनिवार्य होता है। सेना के नियमों के अनुसार, किसी भी सार्वजनिक स्थान पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। यदि निर्धारित समय सीमा के बाद भी कोई संरचना बनी रहती है, तो उसे हटाने की कार्रवाई की जा सकती है।


सारांश:

कोलकाता में सेना द्वारा टीएमसी के विरोध मंच को हटाने की घटना ने राज्य की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर सेना ने अपने नियमों का पालन करते हुए कार्रवाई की, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों ने इसे अपने-अपने दृष्टिकोण से देखा। यह घटना यह दर्शाती है कि सेना के नियमों का पालन न केवल सैन्य अनुशासन के लिए, बल्कि राजनीतिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।